Wednesday, May 1, 2013

Are women really safe?

Mollyshree Dhasmana
M.Sc. Economics (2011)


Women are considered to the pride and respect of a nation and therefore their safety is considered as the responsibility of the people residing there. But India’s pride took a major hit when on December 16, 2012 a 23 years old girl was gang raped, tortured and brutally injured by a group of five people in a moving bus. This incident shocked the whole nation to their core and “humanity” was critically questioned.

The girl died after 13 days of treatment and struggle but left us all thinking and doubting the safety of women in our country. Several women suffer in India from harassment, physical abuse, assault that ranges from verbal harassment to crude preposition and in some cases even rape. Many of these incidents go unreported or as most of the times, unheard. This case made each and every one of us question the security and the law and order of the nation we live in and to what extent is the system damaged and how much repairing it needs. The girl who lost her life, “Damini” or “Nirbhaya” as she is know now, may have left the eyes of her loved ones moist but she opened our eyes and made us all rise and raise our voice to get what we deserve i.e. safety and security to walk the streets without any fear.

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Sunday, April 28, 2013

विकास का विरोधाभासी अनुभव


-अतुल सिंह 

कुछ समय पहले मैं अपनी नौकरी के दौरान दिल्ली में था | मैं अपने ऑफिस की बस में बैठा सड़कों - फ्लाईओवर के ऊपर से गुजर रहा था | और बस में बैठकर दिल्ली की ऐतिहासिक और आधुनिक सुंदरता के सामंजस्य का आनंद ले रहा था | कुछ देर बाद दिल्ली की सुंदरता के बीच मेरी आँखों ने जीवन का वह असामान्य दृश्य देखा जिसने मुझे हैरान तो किया ही सोचने पर भी मजबूर कर दिया |
एक फ्लाईओवर के नीचे एक महिला एक खाट पर लेटी हुई है, उसका तन ढकने को एक नाकाफी साडी है जो बहुत मैली लग रही है | उसके पास में एक बच्चा है जो काफी कमजोर है, शायद वह बच्चा कुपोषण का शिकार है | भला इसमें हैरान करने वाली क्या बात है ? ऐसे वाकये तो आसानी से देखने को मिल जाते हैं | तो इसमें हैरान करने वाली खास बात यह थी कि भले ही महिला के पास तन ढकने को एक ढंग की साडी नहीं थी, उसके बच्चे के पास खाने को पर्याप्त भोजन न हो पर वह महिला मोबाईल फोन पर बात कर रही थी | यह दृश्य देखकर मैं चकित था जिसने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया कि ये कैसा विकास है ? ऐसे विकास को किस तरह परिभाषित किया जाना चाहिए ? जहाँ एक तरफ फ्लाईओवर के ऊपर उच्च वर्ग के लोगों की महंगी महंगी गाडियां दौड रही हैं तो दूसरी तरफ उस महिला को मजबूर होकर फ्लाईओवर के नीचे दिन गुजारने पड़ रहे हैं और एक तरफ महिला के पास भले ही पहनने को पर्याप्त कपडे और बच्चे के लिए पर्याप्त भोजन न हो पर वह मोबाईल पर बात कर रही थी |
यह नज़ारा देखकर अनायास ही मेरे मन में भी दो दशकों से चल रही उदारीकरण पर बहस प्रारंभ हो गई | जिसमें एक वर्ग मानता है कि उदारीकरण का ही प्रभाव है कि भारत प्रगति कर रहा है और विश्वमंच पर अपनी कामयाबी की कहानी लिख रहा है | जबकि दूसरे वर्ग का मानना है कि उदारीकरण ने समाज में असमानता को बढ़ावा देने में मदद की है, उदारीकरण की नीतियों ने गरीब और असहाय लोगों को और पीछे धकेल दिया है | मैं भी इन्ही विचारों की उधेड़बुन में लग गया कि उदारीकरण ने सचमुच भारत में विकास की एक नयी नींव रखी है, ऊँची ऊँची इमारतें और उनमें बहुराष्ट्रीय कंपनियों के दफ्तर, ऊँचे ऊँचे फ्लाईओवर, उन पर दौड़ती महँगी महंगी गाडियां, मेट्रो ट्रेन, कंप्यूटर, आईफोन, मोबाईल आदि जो शायद इतनी जल्दी बिना उदारीकरण के संभव नहीं थे | पर उदारीकरण ही तो वो छुरी है जिसने हमारे समाज के आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग की पीठ पर गहरे घाव किये है | उदारीकरण की नीतियों के अंतर्गत ही सामाजिक सुरक्षाओं से जुडी योजनाओं के बजट में कटौती, आवश्यक सेवाओं पर मिलने वाली सब्सिडी को हटाना, निजीकरण आदि कई ऐसे निर्णय लिए गए जिन्होंने गरीब जनता के जीवन स्तर को नुकसान पहुँचाया है | बढती बेरोजगारी, मुद्रास्फीति और खाद्य वस्तुओं की बढ़ती दरें, किसानों द्वारा की जाने वाली आत्महत्याएं, नक्सलवाद और माओवाद कुछ ऐसे कारक है जो भारत के विकास की तस्वीर को विकृत करते हैं और कहा जाता है कि ये उदारीकरण की ‘कठोर’ नीतियों का ही परिणाम हैं |
सरकार की इन नीतियों पर प्रश्न उठना इसलिए भी स्वाभाविक है क्योंकि इन दो दशकों में उदारीकरण के अंतर्गत जो फैसले लिए गए और उनके जो परिणाम सामने आये हैं उससे पता चलता है कि भले ही कुछ लोगों को फायदा पंहुचा हो पर बहुसंख्यक जनता आज भी अपनी दो रोटी के लिए जद्दोजहद कर रही है | देश में विकास की गति को बेशक एक नयी रफ़्तार मिली है लेकिन अधिकांश लोगों के जीवन स्तर में सुधार की गति में आज भी कई अवरोधक हैं | इन नीतियों के परिणामों से संदेह होता है कि सरकारें अपनी प्राथमिकताओं कों भूल चुकी हैं | सरकार गाँव गांव को कम्प्यूटरीकृत और इन्टरनेट से जोड़ने की बात करती है लेकिन भूल जाती है कि आज भी कई गांव हैं जहाँ लोगों के पास दो वक्त का भोजन नहीं है, गांव में सड़कें नहीं हैं, अस्पताल और विद्यालयों के हालत बदतर हैं | सरकार के ही द्वारा बनायी गई गरीबी रेखा तय करने वाली सभी कमेटियों की रिपोर्ट बताती हैं कि आज भी देश की लगभग आधी जनता गरीबी रेखा के नीचे होते हुए अपना गुजर बसर कर रही है | इसी जनता को सरकारी अस्पतालों की नाकामी के कारण अपनी छोटी कमाई का एक चौथाई हिस्सा अपने स्वास्थय की देखभाल में खर्च करना पड़ता है | अधिकतर सरकारी विद्यालयों की शिक्षा का हाल सभी जानते हैं | शिक्षा कि स्थिति बताने वाली असर रिपोर्ट बताती है कि देश में बच्चों की शिक्षा का स्तर लगातार गिर रहा है | देश के प्रधानमंत्री स्वयं मानते हैं कि देश के आधे बच्चे कुपोषण का शिकार है और यह देश के लिए शर्म की बात है | ऐसे में क्या केवल विकास की गति सभी तक विकास पहुँचने का सही मानक है | भले कुछ शहरों में कुल जनसँख्या के एक छोटे हिस्से को विश्वस्तर की सुविधाएँ प्राप्त हों लेकिन बड़ा हिस्सा मूलभूत आवश्कताओं के लिए तरस ही रहा है | सरकार देश में हो रहे विकास का श्रेय लेना नहीं भूलती लेकिन जरूरी सुविधाओं को आम लोगों तक पहुचाने की अपनी प्राथमिकता को या तो भूल जाती है या जानबूझकर भुला देना चाहती है |

फिर अचानक उस महिला के विषय में ध्यान आया तो सोचने लगा कि क्या उस महिला को उदारीकरण, जिसके विषय में उसे जानकारी भी नहीं है, का शुक्रगुज़ार होना चाहिए कि भले ही उसके पास ठीक से खाने को भोजन और पहनने को कपडा ना हो पर वह मोबाईल पर बात कर रही है या उसे उदारीकरण का विरोध करना चाहिए जिसने उसके कई अधिकारों पर चोट पहुंचाई है कि उसके पास सिर ढकने को एक छत, पहनने को कपडा और खाने को भोजन नहीं है | तब कहा तो यह गया था कि उदारीकरण से होने वाला विकास रिस रिस कर गरीबों तक भी पहुंचेगा और वे भी इससे होने वाले विकास का फायदा उठा पाएंगे | लेकिन सरकार ने इस टिपण्णी पर कोई समय सीमा का वादा नहीं किया था शायद यह उस समय के लिए कहा गया था जब सारे गरीब इस उदारीकरण की भेंट चढ जायेंगे और कोई भी इसका फायदा उठाने के लिए बचेगा ही नहीं |